गुरु रविदास का जन्म 15 वीं शताब्दी में सीर गोवर्धनपुर गाँव,
उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। इस वर्ष 2020 रविदास जयंती 9 फ़ारवरी, रविवार को मनाई जाएगी। भारत में गुरु रविदास जयंती निम्नलिखित क्षेत्रों में एक छुट्टी है:
हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब, उत्तर प्रदेश । यह माघ पूर्णिमा के महीने में
पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। गुरु रविदास जयंती, माघ महीने में पूर्णिमा के दिन
गुरु रविदास का जन्मदिन है। यह रविदासिया धर्म का वार्षिक केंद्र बिंदु है। जिस
दिन अमृतवाणी गुरु रविदास जी को पढ़ी जाती है, निशाण को औपचारिक रूप से बदल दिया
जाता है, और एक विशेष आरती होती है और एक नगर कीर्तन जुलूस निकलता है जिसमें गुरु
के चित्र को मंदिर की गलियों से होते हुए संगीत की संगत में निकाला जाता है। साथ
ही भक्त संस्कार करने के लिए नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं।
हर साल, श्री गुरु रविदास जनम अस्थान मंदिर, सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी में एक भव्य उत्सव इस अवसर को मनाने के लिए लाखों भक्तों के साथ आता है, जो दुनिया भर से इस अवसर को मनाने के लिए आते हैं।
guru ravidas ji |
हर साल, श्री गुरु रविदास जनम अस्थान मंदिर, सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी में एक भव्य उत्सव इस अवसर को मनाने के लिए लाखों भक्तों के साथ आता है, जो दुनिया भर से इस अवसर को मनाने के लिए आते हैं।
गुरु रविदास जी की जीवन यात्रा
रविदास जी का जन्म 15वें सताब्दी के एक दलित परिवार में वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी माता का नाम माता कलसा देवी जी था और उनके पिता का नाम संतोख दास जी था। हलाकि उनका सही जन्म तिथि आज तक मालूम नहीं लग पाया है परन्तु अनुमान लगाया जाता है की उनका जन्म 1376, 1377, और 1399 के बिच हुआ था। उनके पिता राजा नगर मल के राज्य में सरपंच थे और उनके खुद का जूता बनाने और ठीक करने का व्यापार भी था। रविदास जी बहुत ही निडर थे और बचपन से ही भगवान के प्रति भक्ति उनके ह्रदय में थी। उनको बहुत सारे उच्च जातियों द्वारा बनगए नियमों और मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा था जिसका ज़िक्र उन्होंने अपने लेखों में भी किया है। उच्च जाती के लोगों और ब्राह्मणों ने उनकी शिक्षा के समय राजा के समय भी यह शिकायत किया की इस दलित व्यक्ति को भगवान का नाम लेने के लिए मना किया जाये। उनके कुछ अनुनायियों का कहना है की उनकी मृत्यु प्राकृतिक रूप से 120-126 वर्ष की आयु में हुई। हलाकि कुछ लोगों का मानना है उनकी मृत्यु 1540 AD में उनके जन्म स्थान वाराणसी में हुआ था।
गुरु रविदास जी की शिक्षा
बचपन में रविदास जी अपने गुरु, पंडित शारदा नन्द पाठशाला में पढने के लिए गए परन्तु कुछ उच्च जाति के लोगों द्वारा उन्हें वहां पढने के लिए मन किया गया। परन्तु उनके विचारों को देख पंडित शारदा नन्द को भी यह एहसास हुआ की रविदासजी बहुत ही प्रतिभाशाली हैं और उन्होंने रविदासजी को पाठशाला में दाखिला दे दिया और उन्हें पढ़ाने लगे। रविदास जी बहुत ही अच्छे और बुद्धिमान बच्चे थे और पंडित शारदा नन्द से शिक्षा प्राप्त करने के साथ वो एक महान समाज सुधारक बने। पाठशाला में पढाई करते हुए पंडित शारदा नन्द जी का पुत्र उनका मित्र बन गया। संत गुरु रविदासजी को मीरा बाई का अद्यात्मिक गुरु कहा जाता है। मीरा बाई चित्तूर के राजा और राजस्थान के राजा की बेटी थी। वो गुरु रविदासजी के सुविचारों से बहुत ज्यादा प्रभावित हुई थी और उन्होंने उनका सम्मान करते हुए कुछ पंक्ति भी लिखे थे –
गुरु मिल्या रविदास जी दिनी ज्ञान की गुटकी ।
चोट लगी निजनाम हरी की म्हारे हिवरे खटकी ।।
चोट लगी निजनाम हरी की म्हारे हिवरे खटकी ।।
मीरा बाई अपने दादा जी के साथ गुरु रविदासजी से मिल पाई और उनके अध्यात्मिक विचारों से बहुत प्रभावित हुई। उसके बाद वो गुरु सविदास जी की सभी धार्मिक प्रवचनों को सुनने जाने लगी। इससे वो परमात्मा की भक्ति में लीं हो गयी और भक्ति गीत गाने लगीं।
गुरु रविदास जी का
वैवाहिक जीवन
भगवान् के प्रति उनका घनिष्ट प्रेम और भक्ति के कारण वो अपने पारिवारिक व्यापार और माता-पिता से दूर हो रहे थे। यह देख कर उनके माता-पिता ने उनका विवाह श्रीमती लोना देवी से करवा दिया और उनसे उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम था विजय दास। विवाह के बाद भी वो अपने परिवार के व्यापार में सही तरीके से ध्यान नहीं लगा पा रहे थे। यह देख कर उनके पिटे ने एक दिन उन्हें घर से निकल दिया यह देखने के लिए की कैसे गुरु रविदास जी अपने परिवार की मदद के अपने सामजिक कार्यों को कर सकते है। इसके बाद वो अपने घर के पीछे रहने लगे और अपने सामजिक कार्यों को करने लगे। बाद में गुरु रविदास जी राम रूप के भक्त बन गए और राम, रघुनाथ, रजा राम चन्द्र, कृष्णा, हरी, गोविन्द के नामों का उच्चारण करके भगवान के प्रति अपनी भावना व्यक्त करने लगे।
गुरु रविदास जयंती का अवकाश
व्यक्ति सीमित संख्या में छुट्टियां ले सकते हैं
लेकिन सरकारी कार्यालय और अधिकांश व्यवसाय खुले रहते हैं। यह प्रणाली व्यक्तियों
को भारत के विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक समाज में छुट्टी मनाने के लिए समय निकालने
की सुविधा देती है।
Name
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Holiday Type
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2017
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Fri
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Feb 10
|
गुरु रविदास
जयंती
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प्रतिबंधित
अवकाश
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2018
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Wed
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Jan
31
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गुरु रविदास
जयंती
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प्रतिबंधितअवकाश
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2019
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Tue
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Feb 19
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गुरु रविदास
जयंती
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प्रतिबंधित अवकाश
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2020
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Sun
|
Feb
9
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गुरु रविदास
जयंती
|
प्रतिबंधित
अवकाश
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2021
|
Sat
|
Feb 27
|
गुरु रविदास
जयंती
|
प्रतिबंधित अवकाश
|
गुरु रविदास जयंती का इतिहास
गुरु रविदास यह तर्क देने वाले पहले लोगों में
से एक थे कि सभी भारतीयों के पास बुनियादी मानवाधिकारों का एक सेट होना चाहिए। वह
भक्ति आंदोलन में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बन गए और उन्होंने आध्यात्मिकता सिखाई और
भारतीय जाति व्यवस्था के उत्पीड़न से मुक्ति के धार पर समानता के संदेश को आगे
लाने का प्रयास किया। उनके 41 भक्ति गीतों और कविताओं को सिख ग्रंथों, गुरु ग्रंथ
साहिब में शामिल किया गया है। कहा जाता है कि मीरा बाई, हिंदू अध्यात्म में एक
प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, जिन्होंने गुरु रविदास को अपना आध्यात्मिक गुरु माना है। रविदास की
शिक्षाएँ अब रविदासिया धर्म का आधार बनती हैं। रविदासियों का मानना है कि रविदास
को दूसरे गुरुओं की तरह ही एक संत के रूप में माना जाना चाहिए, क्योंकि वे पहले
सिख गुरु के पास रहते थे और उनकी शिक्षाओं का अध्ययन सिख गुरुओं द्वारा किया जाता
था। हाल के वर्षों में, इसने सिखों के साथ संघर्ष का कारण बना और रविदासिया को
रूढ़िवादी सिख संरचना से अलग कर दिया।उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से समय तथा
वचन के पालन सम्बन्धी उनके गुणों का पता चलता है। एक बार एक पर्व के अवसर पर पड़ोस
के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे। रैदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने
का आग्रह किया तो वे बोले, गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किन्तु । गंगा
स्नान के लिए जाने पर मन यहाँ लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा ? मन जो
काम करने के लिए अन्त:करण से तैयार हो वही काम करना उचित है। मन सही है तो इसे
कठौते के जल में ही गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। कहा जाता है कि
इस प्रकार के व्यवहार के बाद से ही कहावत प्रचलित हो गयी कि - मन चंगा तो कठौती में गंगा। रैदास
ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन
तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया। वे
स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते
थे। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध
नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया
है।
“ कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न
पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
उनका विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए
सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है। अभिमान त्याग कर
दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर
उन्होंने बहुत बल दिया। अपने एक भजन में उन्होंने कहा है-
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि
खावै।
उनके विचारों का आशय यही है कि ईश्वर की भक्ति
बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में
सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है
जबकि लघु शरीर की पिपीलिका (चींटी) इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी
प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य
ही ईश्वर का भक्त हो सकता है। रैदास की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक
हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। इसलिए उसका श्रोताओं के मन पर
गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी
जिससे उनकी शंकाओं का सन्तोषजनक समाधान हो जाता था और लोग स्वत: उनके अनुयायी बन
जाते थे। उनकी वाणी का इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि समाज के सभी वर्गों के लोग उनके
प्रति श्रद्धालु बन गये। कहा जाता है कि मीराबाई उनकी भक्ति-भावना
से बहुत प्रभावित हुईं और उनकी शिष्या बन गयी थीं। वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज
बंदहिजासु की। सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की।आज भी सन्त
रैदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।
उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म
तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की
भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में
सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण सन्त रैदास को अपने समय के समाज में अत्यधिक
सम्मान मिला और इसी कारण आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। रैदास के
४० पद गुरु ग्रन्थ साहब में मिलते हैं जिसका सम्पादन गुरु अर्जुन सिंह देव ने १६
वीं सदी में किया था ।
संत रविदास के जीवन की कुछ घटनाएँ
एक बार
गुरु जी के कुछ विद्यार्थी और अनुयायी ने पवित्र नदी गंगा में स्नान के लिये पूछा
तो उन्होंने ये कह कर मना किया कि उन्होंने पहले से ही अपने एक ग्राहक को जूता
देने का वादा कर दिया है तो अब वही उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। रविदास जी के एक
विद्यार्थी ने उनसे दुबारा निवेदन किया तब उन्होंने कहा उनका मानना है कि –
“मन चंगा तो कठौती में
गंगा”
मतलब
शरीर को आत्मा से पवित्र होने की जरुरत है ना कि किसी पवित्र नदी में नहाने से,
अगर हमारी आत्मा और ह्दय शुद्ध है तो हम पूरी तरह से पवित्र है चाहे हम घर में ही
क्यों न नहाये। एक बार उन्होंने अपने एक ब्राहमण मित्र की रक्षा एक भूखे शेर से की
थी जिसके बाद वो दोनों गहरे साथी बन गये। हालाँकि दूसरे ब्राहमण लोग इस दोस्ती से
जलते थे सो उन्होंने इस बात की शिकायत राजा से कर दी। रविदास जी के उस ब्राहमण
मित्र को राजा ने अपने दरबार में बुलाया और भूखे शेर द्वारा मार डालने का हुक्म
दिया। शेर जल्दी से उस ब्राहमण लड़के को मारने के लिये आया लेकिन गुरु रविदास को
उस लड़के को बचाने के लिये खड़े देख शेर थोड़ा शांत हुआ। शेर वहाँ से चला गया और
गुरु रविदास अपने मित्र को अपने घर ले गये। इस बात से राजा और ब्राह्मण लोग बेहद
शर्मिंदा हुये और वो सभी गुरु रविदास के अनुयायी बन गये।
सतगुरु रविदास जी के सन्देश
v
अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी।।
v
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी॥
v
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा॥
v
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती॥
v
प्रभु जी, तुम मोती, हम धागा जैसे सोनहिं मिलत सोहागा॥
v
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै ‘रैदासा’॥
सतगुरु रविदास जी के दोहे
v
जाति-जाति
में
जाति
हैं,
जो
केतन
के
पात।।
v
रैदास मनुष
ना
जुड़
सके
जब
तक
जाति
न
जात ।।
v
मन चंगा
तो
कठौती
में
गंगा ।।
v
बाभन कहत
वेद
के
जाये,
पढ़त
लिखत
कछु
समुझ
न
आवत ।।
v
मन ही
पूजा
मन
ही
धूप
,मन
ही
सेऊँ
सहज
सरूप ।।
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1.डॉ। भीमराव अम्बेडकर जयंती की शुभकामनाएं 2020
Thank you for reading my artical...
1 Comments
Bhagat Ravidas Jayanti 2021 is being celebrated across the nation on Saturday. This year marks the 644th birth anniversary of the renowned saint Bhagat Ravidas Ji, known for his contribution to the Bhakti movement. Read full article visit here: Bhagat Ravidas Jayanti 2021
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